Sunday, June 17, 2012

vijay pandhurang paithan

vijay pandhurang murti 

संत एकनाथ महाराजाच्या राहत्य घरी देवा घरातील ही प्रसिद्ध मूर्ति |
पैठण :  शांति ब्रम्हा एकनाथ महाराज की ख्याति दुनिया भर में प्रसिध है | अपने इस भक्त से भगवन पाढूरंग को इतना प्यार था के उन्होंने एकनाथ महाराज के करीब रहने के लिए १२ सालो तक एकनाथ महाराज के घर चाकरी की | जब इस बात का ज्ञात एकनाथ महाराज को हुवा तो एकनाथ महाराज ने अश्रुभारे आखोसे भवगवान पाढूरंग के पैर पकद्लिये और तबतक नहीं छोड़े जब तक भगवन ने हर साल तुकाराम बीज को पैठण आने का वादा नहीं किया | तब से लेकर आजतक भगवन पाढूरंग शिखण्डया के रूप में एकनाथ महाराज के घर में स्थित इस रंजन को भरने आतेही है | 

फाल्गुन वाद्य शेष्टि १५३३ को एकनाथ महाराज का जन्म हुवा था | महज १३ साल की उम्र में एकनाथ महाराज अपने गुरु जनार्धन स्वामी की खोजमें देवगिरी आज का दौलताबाद किले तक पहुचे और जनार्धन स्वामी से वेद और अद्यात्मा का द्यान प्राप्त किया | एकनाथ महाराज को सुरुवात से ही भगवन पाढूरंग की भक्ति थी | एक दिन श्रीखण्डया नमक वक्ती उनके घर आया और उनके पास सेवा करने की मांग की | सेवा में श्रीखण्डया का नित्यानियम में एकनाथ महाराज के घर में स्थित देवघर के मूर्तियों के पूजन के लिए पत्थर पर चन्दन घिसना, गोदावरी नदी से पाणी लाकर बडेसे रंजन में भरना और पूजा पाठ में एकनाथ महाराज की मदत करना शामिल था | श्रीखण्डया ने एकनाथ महाराज के पास करीब १२ साल सेवा की | एकदिन श्रीखण्डया को खोजते उनका एक और शिष्य आ धमका और श्रीखण्डया का राज खुल गया | श्रीखण्डया असल में भगवन पाढूरंग थे | एकनाथ महाराज ये जानकर सताब्द से रहा गए | जिकी भक्ति में उन्होंने कई वर्ष लगा दिए वो तो उन्ही के साथ थे और खास बात उन्ही की सेवा में लगे थे | उन्हें बहुत आश्चर्य हुवा, भावुक एकनाथ महाराज के आखो से असू फुट पड़े और उन्होंने श्रीखण्डया के रूप में भगवन पाढूरंग के पैर कास कर पकड़ लिए | आखो से धाय धाय असू और पश्चाताप के असू जा रहे थे | ये में ने क्या कर दिया स्वयं भगवन से चाकरी करवाई | यह सोच कर उनका दिल बैठा जा रहा था | भगवन एन उन्हें कॉल दिया के हर साल तुकाराम बीज से इस रंजन को भरने के लिए में स्वयं किसी भी रूप में अवुंगा | 

हर साल पैठण में मनाये जाने वाले इस सालाना एकनाथ षष्टी उत्सव की शुरवात तुकाराम बिज के दिन इस रंजन को साफ़ कर पाणी से भरने से शुरू होती है | ये रंजन जमीं के अंदर बना है |  गोसावी परिवार के आलावा इस रंजन को साफ़ करने अंदर कोई नहीं जाता | उनके मुताबिक यह रंजन करीब १२ से १५ फिट गहरा है |  हजारों भाविक तुकाराम बिज से ही गोदावरी नदी से पाणी लाकर इस रंजन में डालते है | हजारों हंडे पाणी डालने पर इस रंजन में से अचानक पाणी उबलने लगता है | जिस व्यक्ति के आखरी हंडा पाणी डाला है उसे बड़े ही जल्लोष के साथ फूलो की माला डालकर उसी के दर्शन लिए जाते है | "श्रीखण्डया आये है " की घोषणा से पूरा पुराना एकनाथ महाराज का घर गूंज उठता है | 


No comments:

Post a Comment